शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

जरनैल ये तूने क्या किया?

जरनैल सिंह
तुम भी अजीब आदमी हो
भरी महफिल में
देश के गृहमंत्री पर जूता चला दिया?
किस युग में जीते हो
जरनैल?
क्या तुम्हें नहीं मालूम
यहां सब कुछ सोच समझ कर
किया जाता है
प्यार ही नहीं, गुस्सा भी
समर्थन ही नहीं, विरोध भी
और तुम हो
कि भावना में बह जाते हो?

वाकई अजीब हो जरनैल
तुम्हें इस बात का भी एहसास नहीं
कि तुम एक पत्रकार हो
पत्रकार जो कहीं नौकरी करता है
पत्रकार जिसकी कुछ मर्यादाएं तय हैं
पत्रकार जो निष्पक्ष कहा जाता है
लेकिन तुम तो
किसी मुद्दे पर भावनात्मक हो जाते हो
उबल पड़ते हो
जूता पहनकर पीसी में चले जाते हो
और गुस्सा आने पर
चला भी देते हो जूता
आखिर कैसे पत्रकार हो तुम?

जरनैल सिंह
क्या तुमने अपने मालिक से पूछा था?
क्या तुमने अपने संपादक को बताया था
कि तुम पीसी में चलाने वाले हो जूता?
नहीं न
तो अब उनसे सुनो
पत्रकारिता का पाठ
उनसे सीखो
पत्रकारिता की मर्यादा
उनसे सीखो
कैसे किया जाता है कलम का इस्तेमाल
उनसे सीखो
कैसे जलते मुद्दों पर साधी जाती है गुम्मी
उनसे सीखो
कैसे बरती जाती है खामोशी
और अगर नहीं सीख सकते
तो फिर तैयार हो जाओ
क्योंकि
वो अब बताएंगे
तुम्हें तुम्हारी औकात
वो बताएंगे
एक पत्रकार की हैसियत
गृहमंत्री ने माफ कर दिया तो क्या
वो देंगे तुम्हें
तुम्हारे 'जुल्म' की सजा?
आखिर वो कैसे बनने दे सकते हैं
तुम्हें एक मिसाल
मिसाल
एक गुस्से की
मिसाल
एक बेचारगी की
मिसाल
एक पीड़ित के दर्द की
मिसाल
मुद्दे उठाने की तड़प की
आखिर
उन्हें भी तो साबित करनी है
अपनी वफादारी
उन्हें भी तो बताना है कि
उन्हें फिक्र है पत्रकारिता की
पत्रकारों की
और सबसे ज्यादा इस
बात की फिक्र कि
हिंदुस्तान इराक नहीं
यहां विरोध के दूसरे तरीके
आजमाए जा सकते हैं
लेकिन
यहां नहीं पैदा हो सकता कोई
मुंतजर अल जैदी?

बहुत बोल रहा हूं न
क्या करूं
जब से तुम्हारे जूते को देखा है
वो काटने को दौड़ रहा है
मुझे गुस्सा आ रहा है कि
मालिकों और संपादकों का पाठ
पढ़ने से पहले
काश ! तुमने पढ़ लिया होता
तुलसी को
काश ! तुमने जान लिया होता कि
समरथ का कोई दोष नहीं होता
या तुमने
धूमिल से लोकतंत्र में जीना ही सीख लिया होता
कमर झुका कर
टूटने से बचा ही लिया होता खुद को...
बहरहाल
अब जब तुमने जूता चला ही दिया
जब तुमने हंगामा खड़ा कर ही दिया
तो बस
पत्रकारों के लिए
इतना और करना
इस जूते पर किसी
ब्रांड की मोहर मत लगने देना
किसी को मत खरीदने देना
अपना गुस्सा
अपनी तड़प
अपनी बेचारगी
अपना हौसला
और
लड़ने की ताकत।
- १० अप्रैल २००९

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

वोदाफोन का लीगल नोटिस

वोदाफोन ने मुझे एक लीगल नोटिस भेजा है। ये नोटिस कंपनी के मनमाने बिल का भुगतान न करने की वजह से भेजा गया है। वोदाफोन ने जनवरी और फरवरी में डाउनलोडिंग के नाम पर अनाप-शनाप चार्ज किया है। मेरा एक नंबर ९९९९०३१३८० है जो इन दिनों बंद पड़ा है। गनीमत से नंबर बंद होने की वजह मोबाइल का गुम हो जाना है, वरना बिल और भी लंबा हो सकता था। कंपनी के मनमाने रवैये की वजह से मैंने इसे दोबारा हासिल करने की कोशिश भी नहीं की है।
दरअसल वोदाफोन ने वोदा लाइव के नाम से एक सर्विस दे रखी है। इस पर चार्ज बहुत ही मामूली है १० पैसे प्रति मिनट (कारपोरेट कनेक्शन) । ये सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन कंपनी ने कुछ और साइट्स से गुप्त गठबंधन कर रखा है। और वहां आपने क्लिक किया नहीं कि अनाप शनाप चार्ज लगने शुरू हो जाते हैं। ऐसा ही हुआ है मेरे इस नंबर के साथ भी। गाने डाउनलोड करने के नाम पर कंपनी ने ९९ रुपये के हिसाब से चार्ज किया है और उसका तरीका समझ से परे है।
आखिर कोई कंपनी खुद १० पैसे लेकर किसी को उसी सर्विस पर करीब एक हजार गुना ज्यादा चार्ज करने की सुविधा कैसे दे सकती है?
इस पर मैंने कंपनी में शिकायत की तो उनका एक तैयार मेल आ गया कि हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते।
वोदाफोन कस्टमर केयर वालों से बात की तो उनका कहना था कि ये चार्जेज हमारी कंपनी ने नहीं किए हैं ये थर्ड पार्टी पेमेन्ट है।
मैंने वोदाफोन से यही अपील की थी कि
१।थर्ड पार्टी का पेमेन्ट मेरी ओर से आपको करने का हक किसने दिया?
2।आखिर आज जब क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से मोबाइल के थ्रू ही कई सारी परचेजिंग हो जाती है तो आपने इस तरह के बिल का भुगतान करने का ठेका क्यों उठा रखा है?
3-क्यों नहीं थर्ड पार्टी को खुद ब खुद पेमेन्ट लेने को कहा जाता है?
लेकिन कंपनी है कि कोई जवाब देने की बजाय चुप्पी साध लेती है। ये सारा गोरखधंधा महज इसलिए कि उस साइट से कंपनी को अच्छा खासा हिस्सा कमीशन के तौर पर हासिल हो जाता है।
और अब मुझे डराने धमकाने के लिए उन्होंने अपनी लीगल कंपनी से एक नोटिस भेज दिया है। इस नोटिस का जवाब भेजने के लिए मैंने भी एक वकील से बात कर ली है और जल्द ही इसका जवाब दे दिया जाएगा।
बहरहाल, वोदाफोन जैसी कंपनियों के इस धंधे के खिलाफ और क्या किया जा सकता है इस पर आप सभी के सुझाव चाहूंगा। और कंपनियों की इस 'लीगल गुंडागर्दी' से निपटने के लिए आप सभी का सहयोग भी अपेक्षित है।

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

वीओआई- कब मिलेगी दूसरी किश्त

वीओआई- वॉइस ऑफ इम्प्लॉई
वॉइस ऑफ इंडिया चैनल की धांधली बदस्तूर जारी है। कंपनी अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों तक को नहीं बख्श रही है। महीनों सैलरी के लिए इंतजार नहीं करने को तैयार पत्रकारों ने वीओआई को इस्तीफा दिया तो उनके साथ प्रबंधन ने एग्रीमेंट (कोई और विकल्प प्रबंधन ने छोड़ा ही नहीं) का नाटक किया। मेहनताना जो बन रहा था उसके भुगतान के लिए कंपनी ने कर्मचारियों से जबरन मोहलत ले ली और पांच किश्तों में भुगतान का एग्रीमेंट हुआ।
नाराज कर्मचारियों के तेवर देख जैसे-तैसे कंपनी ने फरवरी माह के आखिर में पहली किश्त का भुगतान तो कर दिया लेकिन अब दूसरी किश्त के लिए फिर कर्मचारियों को चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
कई दिनों तक वीओआई ऑफिस के चक्कर लगाने के बाद आखिरकार अब कर्मचारी अदालत में जाने पर विचार कर रहे हैं। इस जंग में कई पत्रकार साथी शामिल हैं। कुछ साथी जो अब तक अपने बकाया भुगतान का इंतजार कर रहे हैं वो भी अब अदालत का दरवाजा खटखटाने का इरादा कर चुके हैं।
आखिर कब तक प्रबंधन का झांसा चलता रहेगा?
आखिर कब तक लोग कंपनी की मनमानी झेलते रहेंगे?
आखिर कहीं तो होगी सुनवाई?
आखिर कभी तो मिलेगा इंसाफ?
वीओआई प्रबंधन के खिलाफ पत्रकार साथियों की इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाना ही होगा और आप सभी से अपील है कि आवाज से आवाज मिलाएं।