शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

निफ्ट से गांधी जयंती पर गुजारिश

महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को देश के प्रतिष्ठित संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के ग्रीन पार्क, दिल्ली स्थित परिसर के बाहर समाज के अलग- अलग तबकों से आए बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्रों और आम लोगों ने एक मीटिंग रखी। इस मीटिंग में साल 2010 में निफ्ट में एडमिशन प्रक्रिया के दौरान आरक्षित सीटों को लेकर चर्चा हुई।
बैठक में बताया गया कि एक आरटीआई के जरिए ये पता चला है कि संस्थान में ओबीसी कोटे की सात, एससी व एसटी कोटे की एक-एक सीटें खाली हैं। इन सीटों को क्यों नहीं भरा गया इसको लेकर निफ्ट का जवाब संतोषजनक नहीं रहा है।
अलग-अलग अखबारों और वेबसाइट में छपी खबरों में निफ्ट की ओर से ये तर्क दिया गया कि
1. निफ्ट का तर्क
संस्थान सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार आरक्षण प्रक्रिया का पूरी तरह पालन कर रहा है।
सवाल-
क. क्या सर्वोच्च न्यायालय ने ये निर्देश दिया है कि मेरिट लिस्ट के छात्रों को सीटें ऑफर न की जाएं?
ख. क्या सर्वोच्च न्यायालय ने ये कहा है कि पहली लिस्ट में सीटें न भरें तो ओबीसी,एससी और एसटी कोटे के तहत सीटें खाली छोड़ दी जाएं।
2. निफ्ट का तर्क
हम दिल्ली विश्वविद्यालय या अन्य संस्थानों की तरह सीटों को भरने के लिए दूसरी या तीसरी वेटिंग लिस्ट जारी नहीं कर सकते।
सवाल-
क. संस्थान ने क्या अलग-अलग कोर्सेस के लिए अलग नियमावली बना रखी है? अगर बीएफटेक और मास्टर्स कोर्स के लिए दूसरी लिस्ट जारी हो सकती है तो फिर बी. डिजाइन में क्यों नहीं?
ख. अगर दूसरी लिस्ट जारी नहीं करनी तो मेरिट लिस्ट जारी करने का क्या फायदा है? क्यों बार-बार अभिभावकों को ये दिलासा दिया गया कि बाकी बची सीटों के लिेए दूसरी लिस्ट आएगी?
3. निफ्ट का तर्क
हम गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकते।
सवाल
क. क्या निफ्ट अपने द्वारा तैयार मेरिट सूची को अपनी गुणवत्ता के अनुकूल नहीं मानता?
ख. क्या ओबीसी कोटे के तहत 530 रैंक के छात्र और 531 रैंक के छात्र में गुणवत्ता का इतना फासला था कि उससे संस्थान का स्तर गिर जाता?
4. निफ्ट का तर्क
दूसरी लिस्ट जारी करने के लिए वक्त कम था?
सवाल-
क. बी.डिजाइन ओबीसी कोटे की काउंसलिंग 18 जून 2010 को खत्म हुई, पढाई 28 जुलाई 2010 को शुरू हुई, क्या वाकई 40 दिनों में मेरिट लिस्ट के बाकी छात्रों से संपर्क कर पाना नामुमकिन था?
ख. अगर दूसरी लिस्ट नहीं निकाली जानी थी तो एडमिशन सेल ने अभिभावकों को क्यों कहा कि इंतजार कीजिए नेट पर दूसरी लिस्ट जारी होगी?
5. एडमिशन से जुड़ा तथ्य-
बी. डिजाइन के लिए ओबीसी श्रेणी में काउंसलिंग के लिए 530 छात्रों को बुलाया गया। यह संख्या कुल सीटों (356) की तुलना में महज 54 फीसदी ज्यादा छात्र है, जबकि सामान्य कोटे में 85 फीसदी ज्यादा, एससी कोटे में 108 फीसदी ज्यादा और एसटी श्रेणी में 83 फीसदी ज्यादा छात्र काउंसलिंग के लिए बुलाए गए।
निफ्ट का तर्क
पिछले रिकार्डो को देखते हुए एक अनुमान के आधार पर संस्थान काउंसलिंग के लिए बुलाए जाने वाले छात्रों की संख्या तय करती है।
सवाल-
अगर काउंसलिंग में ओबीसी कोटे के तहत कम छात्रों को बुलाए जाने का मकसद उन्हें अनावश्यक परेशानी से बचाना था तो फिर सीटें खाली रहने पर उन्हें ये सीटें ऑफर क्यों नहीं की गईं?
अफसोस कि बात है कि ज्यादातर मामलों में निफ्ट के तर्क संतोषजनक नहीं हैं और इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने में निफ्ट के अधिकारियों की कोई दिलचस्पी नहीं है। हम अधोहस्ताक्षरी निफ्ट में आरक्षण कोटे के साथ मनमानी और खिलवाड़ की तीखी निंदा करते हैं।
हमारी विनम्र मांग यह है कि
1. निफ्ट लिखित रूप में हमारे सभी उपरोक्त सवालों का जवाब मुहैया कराए और अब इस मामले और ज्यादा देरी न की जाए।
2. संस्थान आरक्षित कोटे की बाकी बची 9 सीटों के लिए दूसरी लिस्ट जारी करे और छात्रों को फौरन दाखिला दे।
3. संस्थान ओबीसी, एससी और एसटी कोटे के साथ खिलवाड़ की निष्पक्ष जांच करे।
4. आरक्षण कोटे के साथ इस मनमाने रवैये के लिए दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करे।
5. अगर संस्थान में वाकई कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है तो इस पूरी प्रक्रिया और जांच से निकले निष्कर्षों को सार्वजनिक करे।