सोमवार, 22 जून 2009

जीवन बहे रे बहे

नर्मदा का ताल
लहरों पर संगीत
सागौन में नयी- नई
कोपलों का मौसम
हल्की बूंदा- बांदी से
गीली हुई मिट्टी
सौंधा- सौंधा पहाड़
सूखी - सूखी चिडिया
टिड्डियाँ और
तितलियाँ
पत्ती-पत्ती पर हजारों हजार
खुशियाँ ।
किंतु बिखरा जीवन
दिन , बहुत कम।
इसलिए गाते हैं , नाचते हैं
बूढे आदिवासी लोग और
हिल उठता है पूरा
जंगल।
हर तीज पर
झुंड के झुंड
एका बाँध झूम जाते हैं
पुरखों की आत्मा की शान्ति के वास्ते !
साथ लाते हैं
अपनी-अपनी औलादें
ताकि कल ख़ुद के मरने पर
आत्मा
युवा पीढी के देह दिमाग में
रुके, घुटनों पर
थोड़ा मुडे और
हाथ उठाये
जिन्दा हो जाए
बार - बार , हर साल।
- शिरीष खरे। मुंबई क्राई के साथ जुड़े हैं।

1 टिप्पणी:

Aadarsh Rathore ने कहा…

मत दिलाओ जड़ों की याद...