मंगलवार, 4 जनवरी 2011
हत्या से उपजे सवाल
बिहार में पूर्णिया से भारतीय जनता पार्टी के विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या का पूरा विवरण तो जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन पहली नजर में जो बातें सामने आई हैं, वे हमारे जनप्रतिनिधियों की आम फहम छवि को ही पुख्ता करती हैं। हमारे जनप्रतिनिधियों में बहुसंख्यक लोग निश्चय ही भले और जिम्मेदार लोग हैं, लेकिन उनमें अपराधी तत्वों की तादाद भी इतनी बड़ी है कि किसी नेता पर कोई आरोप लगे तो लोग सहज ही विश्वास कर लेते हैं। केसरी की हत्या की आरोपी महिला रूपम पाठक ने केसरी पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था और संभवत: हत्या भी उसने समय पर सुनवाई न करने की वजह से करने की ठानी। विधायक के आसपास के लोगों का आचरण भी कानून और न्याय के प्रति उनकी उपेक्षा को ही जाहिर करता है कि उन्होंने उस महिला को इतना पीटा कि वह गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है। समूचा प्रसंग यह बताता है कि जिन लोगों के जिम्मे कानून बनाने और उसके पालन की देखरेख करने की जिम्मेदारी है, उनके आसपास कैसा अराजक और कानून का मखौल उड़ाने वाला माहौल है। यह स्पष्ट शब्दों में कहना चाहिए कि विधायक केसरी की हत्या निहायत गलत कदम है और उस महिला के आरोप अगर सच भी हों तो उसने एक गलत और गैर-कानूनी रास्ता अपनाया, लेकिन हमें इस बात पर भी फिक्रमंद होना चाहिए कि हमारे जनप्रतिनिधियों की छवि इतनी खराब है कि शायद लोग बिना किसी पुख्ता सुबूत के उस महिला के आरोपों को विश्वसनीय मान लें। ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी विधायक पर ऐसे आचरण का आरोप लगा हो। उत्तर प्रदेश में एक बसपा विधायक द्वारा कथित यौन दुराचार को लेकर बवाल मचा हुआ है। मुख्यमंत्री मायावती द्वारा सख्त कार्रवाई करने के बावजूद उत्तर प्रदेश में एकाधिक बार विधायक ऐसे मामलों में फंस चुके हैं, बल्कि लगभग हर राज्य में ऐसे कांडों की गूंज हुई है। यह कहना भी जरूरी है कि हर पार्टी में ऐसे लोग हैं और जबानी जमाखर्च के अलावा किसी पार्टी ने अपने अंदर के अपराधी तत्वों को बाहर निकालने के लिए व्यवस्थित प्रयास किए हों। हर पार्टी को राजनीति में अपराधियों का मसला तभी महत्वपूर्ण दिखाई देता है, जब विरोधी पार्टी के किसी नेता का नाम अपराध में उछलता है। सवाल सिर्फ माननीय जनप्रतिनिधियों के लिप्त होने का नहीं है, सवाल यह है कि अगर जनप्रतिनिधि ऐसे हों तो बाकी समाज में कानून के पालन की हम क्या उम्मीद कर सकते हैं।
बिहार में राजग ने अभी-अभी ऐतिहासिक जनमत हासिल किया है और इस ऐतिहासिक जनमत के पीछे एक बड़ा कारण कानून के राज की बहाली है। राजग ने बिहार में कुछ समझौते जरूर किए हैं, लेकिन राजनीति में अपराध के वर्चस्व को कम करने की नीतीश कुमार की सरकार ने काफी हद तक सफल कोशिश की है। जरूरी यह है कि जनता का विश्वास इस सरकार और कानून के राज में बना रहे और इसके लिए सरकार को इसकी निष्पक्ष जांच करनी चाहिए। तय है महिला द्वारा विधायक की हत्या करने के बाद भीड़तंत्र ने उसकी खूब पिटाई की, पर उस समय सुरक्षा गार्ड क्या कर रहे थे। यह सवाल भी है। जरूरी यह है कि राजनैतिक और कानूनी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बना रहे, इसलिए राजनैतिक पार्टियां अपने गिरेबान में जरा झांकें।
दैनिक हिंदुस्तान का संपादकीय, 5 जनवरी, 2011
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