गुरुवार, 25 अगस्त 2011

देश जागा ! ...तो मर गई सरकार !


देश के जागने पर सरकार के मरने का एहसास क्या होता है ? ये रामलीला मैदान में बैठे अन्ना हजारे और उनके लाखों समर्थकों से पूछिए। ये बात उन करोड़ों लोगों से पूछिए जो देश भर में 'अन्ना नहीं आंधी है... देश का दूसरा गांधी है...' के नारे लगा रहे हैं। ये बात उन छोटे-छोटे बच्चों से पूछिए जो 'ट्विंकल ट्विंकल लिट्ल स्टार.... खत्म हो ये भ्रष्टाचार' के बोल गुनगुना रहे हैं...! इससे पहले, कम से कम आज की युवा पीढ़ी को ये एहसास इतना तीव्रतर हो कर नस्तर की तरह नहीं चुभ रहा था कि सरकार मर चुकी है... और वो 'लोकतंत्र की चिता' पर अपनी 'अय्याशी का कबाब' सेंक रही है। हद तो ये है कि बकायदा ये 'कबाब' रामलीला मैदान में भूखे बैठे अन्ना की फिक्र छोड़कर प्रधानमंत्री की इफ्तार पार्टी में चबाया जा रहा है और लोकतंत्र का ठेका संभाले सांसदों में इसका स्वाद लेने की होड़ मची है ।

सत्ता पक्ष ने लोकतंत्र की मौत का इंतजाम किया और उसका मर्सिया पढ़ने की बारी आई तो बाकी पार्टियों को भी अपने साथ कर लिया। पहले टीम अन्ना के साथ सलमान खुर्शीद और प्रणब मुखर्जी ने जनलोकपाल पर मीटिंग-मीटिंग का नाटक खेला, सरकार के रटे-रटाए जुमले दोहराए, झूठे-सच्चे वादे किए और महज 24 घंटे में उन वादों को ऑल पार्टी मीटिंग में चाय कॉफी के साथ गटक लिया। टीम अन्ना को कह दिया कि जो मांग आप कर रहे हैं, ये मुमकिन नहीं है। एक पल में देश के लाखों करोड़ों लोगों के मन में जो उम्मीद जगी थी, सरकार में जो भरोसा जगा था, उसको लोकतंत्र के तमाम तकाजों के साथ ही कब्र में दफना दिया।


सरकार की पहली मौत

इस सरकार की धड़कन उस दिन बंद हो गई, जब पीएम को लोकपाल के दायरे से बाहर कर दिया गया। उस सरकार को जिंदा कैसे माना जा सकता है जो अपने आका को जांच से बचाने की जुगाड़ करती दिखे।
सरकार की दूसरी मौत

सरकार दूसरी बार तब मरी जब मनीष तिवारी जैसे प्रवक्ता को लड़ाई के मोर्चे पर आगे किया । लोकतांत्रिक व्यवस्था में समर्थन-विरोध की परंपरा को कुचलते हुए मनीष तिवारी ने अन्ना हजारे पर ओछे आरोप लगाए।

सरकार की तीसरी मौत

सरकार की तीसरी बार मौत तब हुई जब उसने अन्ना हजारे को अनशन की जगह देने से इंकार कर दिया। सरकार ने दिल्ली पुलिस के जरिए अन्ना पर 22 नाजायज शर्तें थोप दीं। उस सरकार को कैसे जिंदा माना जाए जिसमें अपना विरोध सहने का माद्दा ना हो।

सरकार की चौथी मौत

सरकार की चौथी मौत तिहाड़ जेल में हुई । सरकार ने अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया। वो सरकार जो अपने जननायकों से ऐसा बर्ताव करे, उसे जिंदा कैसे माना जाए।

सरकार की पांचवीं मौत

सरकार की पांचवी मौत तब हुई जब सरकार के तीन-तीन मंत्री चिदंबरम, सिब्बल और अंबिका सोनी देश को अन्ना की गिरफ्तारी की मजबूरियां बताने लगे। जब देश के गृहमंत्री ये झूठ बोलने लगे कि उन्हें नहीं मालूम कि इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस क्या करती रही और अन्ना को गिरफ्तार कर कहां रखा गया। उस सरकार को जिंदा कैसे माना जाए जो देश में इतनी बड़ी उथल-पुथल से आंखें मूंदें बैठी हो।

सरकार की छठी मौत

सरकार की सांसें छठी बार तब थमीं, जब अन्ना हजारे ने तिहाड़ जेल से बाहर आने से ही मना कर दिया। जो सरकार सुबह अन्ना को देश की शांति के लिए खतरा बना कर गिरफ्तार करवा रही थी, वही सरकार शाम होने तक रिरियाती रही और अन्ना तिहाड़ जेल में ही अनशन पर डट गए।

सरकार की सातवीं मौत

सातवीं बार सरकार दिल्ली ही नहीं देश भर के कई शहरों की सड़कों पर मरी। देश भर में लोग अन्ना के समर्थन में उतर आए। सरकार के खिलाफ नारे लगने शुरू हो गए। अन्ना के समर्थन में उमड़े जनसैलाब के आगे सरकार पूरी तरह दम तोड़ गई ।

सरकार की आठवीं मौत

अन्ना के अनशन के आठवें दिन सिर्फ सरकार ही नहीं संसदीय सिस्टम की मौत हो गई। तीन दिन की छुट्टियों में पघुराए सांसद जब संसद भवन पहुंचे तो जनलोकपाल और अन्ना के अनशन पर चर्चा के बहाने राजनीतिक रोटियां सेंकने लगे और किसी ने भी खुलकर कोई स्टैंड नहीं लिया।

सरकार की नौवीं मौत

सरकार की नौवीं मौत तब हुई जब टीम अन्ना के साथ सरकार विश्वासघात और छल पर उतर आई। सरकार ने पहले दिन जो मुहजबानी वादे किए, उसे दूसरे दिन लिख कर देने से साफ मना कर दिया। ये सरकार पर भरोसे की आखिरी मौत थी...

सरकार की दसवीं मौत

सरकार की दसवीं पर शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए आप भी आमंत्रित हैं.... तारीख आप खुद तय कर लें... ये महज एहसास का सवाल है....

पशुपति शर्मा/बजरंग झा
(अन्ना के आंदोलन पर प्रकाशित पत्रिका 'अनायास अन्ना' से उद्धृत)

1 टिप्पणी:

mohnish mohan ने कहा…

शर्मा जी कमाल कर दिए... बहुत सुंदर है... लेखन में टीवी और पेज डिजाइनिंग में प्रिंट का अनुभव काम आया है... ग्राफिस वाले अवनीश का कमेंट था कि सर ने बिल्कुल वाइप प्लेट की तरह पहली मौत... दूसरी मौत का इस्तेमाल किया है... बहुत सुंदर... "देश जागा!... तो मर गयी सरकार" पढ़कर अच्छा लगा... लिखकर नहीं मिलकर चर्चा की जाएगी... बहस करने में आसानी होती है... अन्ना के बहाने देश-दुनिया की भी बाते हो जाएंगी... एक बार फिर बधाइयां और शुभकामनाएं...