इस देश के तमाम नेताओं से विनम्र अनुरोध है कि वो आईपीएल क्रिकेट का महातमाशा जरूर देखें। ना सिर्फ देखें बल्कि इसकी बारीकियां, इसकी ब्यूह रचना और इसके दूसरे विन्यासों को भी गौर से देखने-परखने की कोशिश करें। क्योंकि आईपीएल नाम के इस तमाशे में अपने नेता बंधुओं को आगे लिए कई अहम सीख मिल सकती हैं। वो आईपीएल से सीख सकते हैं कि किसी टीम या किसी पार्टी की कप्तानी कैसे दबोच ली जाती है। कैसे 'बाहरी' होते हुए भी कोई किसी टीम की बागडोर संभाल लेता है और उन खिलाड़ियों को अपने आदेशों पर भगाना- नचाना शुरु कर देता है जो वहां के हैं, स्थानीय हैं।
आईपीएल क्रिकेट को राजनीति का रुपक बनाने पर शायद आप हैरान हों। आपको ये जुगलबंदी शायद अजीबोगरीब लगे। अगर मैं आपसे ये कहूं कि अभी-अभी खत्म हुआ यूपी विधानसभा चुनाव आईपीएल क्रिकेट की तर्ज पर लड़ा गया तो आप यकीनन और अचंभित होंगे। लेकिन सच कहूं तो मुझे कुछ ऐसा ही लगा। आप बताएं। आईपीएल में टीम राजस्थान की होती है और कप्तान साहेब आस्ट्रेलिया के होते हैं कि नहीं? टीम पंजाब की होती है और कप्तान श्रीलंका के होते हैं कि नहीं? टीम चेन्नई की होती है और कप्तान हुजूर झारखंड से इंपोर्टेड होते हैं कि नहीं? यही नहीं टीम दिल्ली की होती है खिलाड़ी न्यूजीलैंड का। टीम कोलकाता की होती है खिलाड़ी पाकिस्तान का।
अब जरा यूपी चुनाव के फ्लैश बैक में जाइए। चुनाव यूपी में था और बीजेपी की सीएम कैंडिडेट उमा भारती मध्यप्रदेश की थी कि नहीं? चुनाव यूपी का और कांग्रेस के सबसे बड़े कर्ता-धर्ता दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के थे कि नहीं? चुनाव यूपी का और बीजेपी के सारे फैसले नागपुरी नितिन गडकरी ने किए कि नहीं? कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट बेनी प्रसाद वर्मा हाल तक समाजवादी पार्टी की शोभा बढा रहे थे कि नहीं? तो यूपी चुनाव से आईपीएल का कनेक्शन हुआ कि नहीं?
यूपी इलेक्शन से आईपीएल कनेक्शन सबसे ज्यादा बीजेपी में नजर आया। कहां उमा भारती मध्यप्रदेश के सियासी वन में वनवास भोग रही थीं। ठसक वाली उमाजी का ये हाल हो गया था कि ठौर-ठिकाना तलाशने को मजबूर हो गई थीं। लेकिन वाह री बीजेपी। यूपी इलेक्शन से आईपीएल का ऐसा कनेक्शन जोड़ा कि उमाजी गुमनामी के बियावान जंगल से निकलकर चुनावी मैदान में गुर्राने लगीं। जिस बीजेपी को उमाजी बड़ी बेदर्दी से टाटा-बाय-बाय बोल चुकी थीं उसी बीजेपी ने उन्हें ससम्मान यूपी चुनाव में वाइस कैप्टन बना दिया। ये अलग बात है कि उमा भारती की उप कप्तानी यूपी की जनता को रास नहीं आई। उमाजी मैच हारकर पैवेलियन में बैठी हैं। इंतजार कर रही हैं अगले इलेक्शन का। अगले चुनाव में उमाजी के लिए फिर कोई कोई काम तो निकल ही आएगा।
क्रिकेट में अब ये आम प्रैक्टिस हो गई है विदेशी कोच लाने की। बीजेपी ने यूपी चुनाव में भी कोचिंग की जिम्मेदारी नागपुर के नितिन गडकरी के हाथों में ही रखी। वैसे गडकरीजी पार्टी अध्यक्ष हैं और इस नाते कोच पद पर उनका हक भी बनता है लेकिन उन्होंने गलती ये कर दी कि खुद ही बैटिंग, बालिंग और फील्डिंग तीनों के कोच बन गए। आडवाणी, राजनाथ, सुषमा, जेटली, तमाम खेमों को गडकरीजी ने इस चुनाव में किनारे लगाकर रखा। यूपी के बाकी बीजेपी नेताओं की तो खैर बिसात ही क्या। नतीजा आपके सामने है। गडकरीजी ने पार्टी के नेताओं को किनारे किया, जनता ने बीजेपी से किनारा कर लिया।
इलेक्शन में आईपीएल का फंडा कांग्रेस ने भी आजमाया और जनता ने उसका भी हिसाब-किताब बराबर कर दिया। बाहरी खिलाड़ियों को इंपोर्ट करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। कांग्रेस के चाणक्य दिग्विजय मध्यप्रदेश से इंपोर्टेड, कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी से इंपोर्टेड, कांग्रेस के एक और तुरुप का पत्ता और दलित चेहरा पीएल पुनिया बीएसपी से इंपोर्टेड। टिकट बंटवारे में भी बाहरियों की बल्ले-बल्ले रही। बस, जनता ने भी बल्ला चला दिया। अब कांग्रेसियों से मेरी यही अपील है कि अब जब वो आईपीएल मैच देखें तो ये भी देखें कि टीम सिर्फ स्टार खिलाडियों के दम पर नहीं जीता करती। टीम जीतती है टीम भावना से, टीम एफर्ट से।
बात आईपीएल से यूपी इलेक्शन के कनेक्शन की चली है तो जरा देसी खिलाड़ियों की भी बात हो जाए। यूपी इलेक्शन में आउटसाइडर के भरोसे रहने वाली पार्टी को जनता ने धोबी पाट दिया तो देसी खिलाड़ियों से सजी टीम अखिलेश को ट्राफी ही सौंप दी। देसी खिलाडी तो बहिनजी की टीम में भी खूब थे लेकिन चुनाव आते-आते सबके सब आउट ऑफ फार्म हो गए। बहिनजी ने टीम सलेक्शन में खूब दिमाग लगाया। जिस पर ना चलने का रत्ती भर भी शक था उसे टीम से बाहर कर दिया। लेकिन बहिनजी का 'आपरेशन फेरबदल' फरेबी साबित हुआ। जनता ने उनकी फांस में आने से इंकार कर दिया। बहिनजी को अब पांच साल तक नेट प्रैक्टिस करनी होगी। तब भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उनका फार्म लौट ही आए।
तो कहने का मतलब ये कि यूपी इलेक्शन से बीजेपी और कांग्रेस ने जिस तरह आईपीएल का कनेक्शन जोड़ा उसका एक्सटेंशन आपको आने वाले दिनों में और भी देखने को मिल सकता है। गुजरात का चुनाव आने वाला है, हिमाचल में भी चुनाव है। फिर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान की बारी है। हो सकता है उन चुनावों में भी आईपीएल कनेक्शन आपको दिख जाए। क्योंकि ये सिर्फ यूपी का मसला नहीं। ये तो राजनीति का एक फेनोमेनन है जिसकी झलक आपको कहीं भी, कभी भी देखने को मिल सकती है। यूपी से शुरु हुआ ये प्रयोग आगे भी जारी रह सकता है। यूपी में कारगर नहीं रहा लेकिन कहीं और ये कारगर हो जाए। जो भी हो मारे तो 'वो' बेचारे ही जाएंगे जो पांच सालों तक इस उम्मीद में मेहनत करते हैं कि वक्त आने पर उन्हें ईनाम मिलेगा लेकिन उनके हिस्से की मलाई कोई और महानुभाव खा जाते हैं। बोली किसी और की लग जाती है और वो इंतज़ार करते रह जाते हैं।
आईपीएल क्रिकेट को राजनीति का रुपक बनाने पर शायद आप हैरान हों। आपको ये जुगलबंदी शायद अजीबोगरीब लगे। अगर मैं आपसे ये कहूं कि अभी-अभी खत्म हुआ यूपी विधानसभा चुनाव आईपीएल क्रिकेट की तर्ज पर लड़ा गया तो आप यकीनन और अचंभित होंगे। लेकिन सच कहूं तो मुझे कुछ ऐसा ही लगा। आप बताएं। आईपीएल में टीम राजस्थान की होती है और कप्तान साहेब आस्ट्रेलिया के होते हैं कि नहीं? टीम पंजाब की होती है और कप्तान श्रीलंका के होते हैं कि नहीं? टीम चेन्नई की होती है और कप्तान हुजूर झारखंड से इंपोर्टेड होते हैं कि नहीं? यही नहीं टीम दिल्ली की होती है खिलाड़ी न्यूजीलैंड का। टीम कोलकाता की होती है खिलाड़ी पाकिस्तान का।
अब जरा यूपी चुनाव के फ्लैश बैक में जाइए। चुनाव यूपी में था और बीजेपी की सीएम कैंडिडेट उमा भारती मध्यप्रदेश की थी कि नहीं? चुनाव यूपी का और कांग्रेस के सबसे बड़े कर्ता-धर्ता दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के थे कि नहीं? चुनाव यूपी का और बीजेपी के सारे फैसले नागपुरी नितिन गडकरी ने किए कि नहीं? कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट बेनी प्रसाद वर्मा हाल तक समाजवादी पार्टी की शोभा बढा रहे थे कि नहीं? तो यूपी चुनाव से आईपीएल का कनेक्शन हुआ कि नहीं?
यूपी इलेक्शन से आईपीएल कनेक्शन सबसे ज्यादा बीजेपी में नजर आया। कहां उमा भारती मध्यप्रदेश के सियासी वन में वनवास भोग रही थीं। ठसक वाली उमाजी का ये हाल हो गया था कि ठौर-ठिकाना तलाशने को मजबूर हो गई थीं। लेकिन वाह री बीजेपी। यूपी इलेक्शन से आईपीएल का ऐसा कनेक्शन जोड़ा कि उमाजी गुमनामी के बियावान जंगल से निकलकर चुनावी मैदान में गुर्राने लगीं। जिस बीजेपी को उमाजी बड़ी बेदर्दी से टाटा-बाय-बाय बोल चुकी थीं उसी बीजेपी ने उन्हें ससम्मान यूपी चुनाव में वाइस कैप्टन बना दिया। ये अलग बात है कि उमा भारती की उप कप्तानी यूपी की जनता को रास नहीं आई। उमाजी मैच हारकर पैवेलियन में बैठी हैं। इंतजार कर रही हैं अगले इलेक्शन का। अगले चुनाव में उमाजी के लिए फिर कोई कोई काम तो निकल ही आएगा।
क्रिकेट में अब ये आम प्रैक्टिस हो गई है विदेशी कोच लाने की। बीजेपी ने यूपी चुनाव में भी कोचिंग की जिम्मेदारी नागपुर के नितिन गडकरी के हाथों में ही रखी। वैसे गडकरीजी पार्टी अध्यक्ष हैं और इस नाते कोच पद पर उनका हक भी बनता है लेकिन उन्होंने गलती ये कर दी कि खुद ही बैटिंग, बालिंग और फील्डिंग तीनों के कोच बन गए। आडवाणी, राजनाथ, सुषमा, जेटली, तमाम खेमों को गडकरीजी ने इस चुनाव में किनारे लगाकर रखा। यूपी के बाकी बीजेपी नेताओं की तो खैर बिसात ही क्या। नतीजा आपके सामने है। गडकरीजी ने पार्टी के नेताओं को किनारे किया, जनता ने बीजेपी से किनारा कर लिया।
इलेक्शन में आईपीएल का फंडा कांग्रेस ने भी आजमाया और जनता ने उसका भी हिसाब-किताब बराबर कर दिया। बाहरी खिलाड़ियों को इंपोर्ट करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। कांग्रेस के चाणक्य दिग्विजय मध्यप्रदेश से इंपोर्टेड, कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी से इंपोर्टेड, कांग्रेस के एक और तुरुप का पत्ता और दलित चेहरा पीएल पुनिया बीएसपी से इंपोर्टेड। टिकट बंटवारे में भी बाहरियों की बल्ले-बल्ले रही। बस, जनता ने भी बल्ला चला दिया। अब कांग्रेसियों से मेरी यही अपील है कि अब जब वो आईपीएल मैच देखें तो ये भी देखें कि टीम सिर्फ स्टार खिलाडियों के दम पर नहीं जीता करती। टीम जीतती है टीम भावना से, टीम एफर्ट से।
बात आईपीएल से यूपी इलेक्शन के कनेक्शन की चली है तो जरा देसी खिलाड़ियों की भी बात हो जाए। यूपी इलेक्शन में आउटसाइडर के भरोसे रहने वाली पार्टी को जनता ने धोबी पाट दिया तो देसी खिलाड़ियों से सजी टीम अखिलेश को ट्राफी ही सौंप दी। देसी खिलाडी तो बहिनजी की टीम में भी खूब थे लेकिन चुनाव आते-आते सबके सब आउट ऑफ फार्म हो गए। बहिनजी ने टीम सलेक्शन में खूब दिमाग लगाया। जिस पर ना चलने का रत्ती भर भी शक था उसे टीम से बाहर कर दिया। लेकिन बहिनजी का 'आपरेशन फेरबदल' फरेबी साबित हुआ। जनता ने उनकी फांस में आने से इंकार कर दिया। बहिनजी को अब पांच साल तक नेट प्रैक्टिस करनी होगी। तब भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उनका फार्म लौट ही आए।
तो कहने का मतलब ये कि यूपी इलेक्शन से बीजेपी और कांग्रेस ने जिस तरह आईपीएल का कनेक्शन जोड़ा उसका एक्सटेंशन आपको आने वाले दिनों में और भी देखने को मिल सकता है। गुजरात का चुनाव आने वाला है, हिमाचल में भी चुनाव है। फिर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान की बारी है। हो सकता है उन चुनावों में भी आईपीएल कनेक्शन आपको दिख जाए। क्योंकि ये सिर्फ यूपी का मसला नहीं। ये तो राजनीति का एक फेनोमेनन है जिसकी झलक आपको कहीं भी, कभी भी देखने को मिल सकती है। यूपी से शुरु हुआ ये प्रयोग आगे भी जारी रह सकता है। यूपी में कारगर नहीं रहा लेकिन कहीं और ये कारगर हो जाए। जो भी हो मारे तो 'वो' बेचारे ही जाएंगे जो पांच सालों तक इस उम्मीद में मेहनत करते हैं कि वक्त आने पर उन्हें ईनाम मिलेगा लेकिन उनके हिस्से की मलाई कोई और महानुभाव खा जाते हैं। बोली किसी और की लग जाती है और वो इंतज़ार करते रह जाते हैं।
बजरंग झा
एसोसिएट एक्जक्यूटिव प्रोड्यूसर
न्य़ूज 24
मोबाइल-9899029101
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