मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
देश से बड़े नहीं सचिन तेंदुलकर
दक्षिण अफ्रीका के सेंचुरियन मैदान पर सचिन तेंदुलकर टेस्ट क्रिकेट में शतक की ओर बढ़ रहे थे और टेलिविजन मीडिया का विवेक विहीन उन्माद उफान पर था। चैनल में उत्सव की तैय़ारी शुरू हो गई थी। महान, महानतम, ब्रैडमैन का बाप, क्रिकेट का भगवान न जाने कितने ही जुमले हवा में उछाले जा रहे थे। मूर्तिपूजा में अंधा हो चुका नायकों से रिक्त हमारा समाज सचिन में अपना नायक देख रहा था, पिछले कई सालों से देखता आ रहा है और आने वाली नस्लें भी देखती रहेंगी। लेकिन एक सत्य जो सामने चीख-चीख कर इस उत्सव का मजाक उड़ा रहा था, उसे देखने और अफसोस जताने की चिंता किसी को नहीं थी।
वो सत्य दक्षिण अफ्रीका की जमीन पर भारतीय टीम की शर्मनाक हार के रूप में पहले भी कई मर्तबा प्रकट हो चुका है। इस बार भी सामने था लेकिन सचिन रमेश तेंदुलकर के पचासवें शतक की प्रतीक्षा में अधीर लोग भला हार की ओर क्यों ध्यान देते। वैसे भी जब क्रिकेट और फिल्मों के नायक देश से बड़े हो जाएं तो राष्ट्र के अपमान और सम्मान का प्रश्न अपनी प्रासंगिकता खो देता है। यहां ऐसा ही हो रहा है। सचिन तेंदुलकर ने शतक जमाया। तालियों के शोर में सब डूब गए और दूसरी ओर से भारतीय टीम पर छाया हार का संकट धोनी के आउट होने के साथ ही गहराता चला गया।
टीवी चैनल्स के तमाम तय कार्यक्रम रद्द हो चुके थे। हर चैनल पर बस सचिन थे। कहीं भगवान बनकर तो कहीं महानायक , कही महासेंचुरियन बनकर तो कहीं पचास मार खां।
एक टीवी चैनल ने तो हद ही कर दी। वैसे वो चैनल स्वनामधन्य है। वहां बड़े महान अंग्रेजीदां पत्रकार हैं। वैचारिक तौर पर वामपंथी, सत्य़ दिखाने वाले। वहां एक वरिष्ठ समाचार वाचक सचिन का गुणगान करने में लगे थे। तेंदुलकर के प्रशस्ति गान में डूबी उनकी वाणी दर्प से चूर थी। ऐसा आभास हो रहा था कि महाशक्ति बनने से बस फर्लांग भर की दूरी पर खड़ा है भारत। तभी टीवी स्कीन पर अचानक एक संदेश चस्पा हो गया।
जिस पर लिखा था---
जेनरेशंस टू कम विल स्कार्स बिलीव दैट सच ए मैन एज़ दिस एवर इन फ्लेश एन्ड ब्लड वॉक्ड अपोन दिस अर्थ..
अलबर्ट आइन्सटीन
ये संदेश बिना किसी प्रस्तावना के टीवी स्क्रीन पर आया और कुछ देर रुक कर विलुप्त हो गया। बताने की जरूरत नहीं है कि ये बातें आइन्सटीन ने महात्मा गांधी के बारे में कही थीं। लेकिन भावुक पत्रकार ने सोचा होगा कि गांधी तो बीते जमाने के हो गए अब इस दौर में तो सचिन ही इस श्रद्धाभाव के हकदार हैं। आने वाली पीढ़ियां वाकई य़े सोचकर हैरान होंगी कि हाड़ मांस का बना कोई ऐसा इंसान कभी इस धऱती पर मौजूद था।
अब जरा सोचिए कि नायक की परिभाषा और पहचान कैसे बदल गई। गांधी और तेंदुलकर एक ही तराजू पर तौले जा रहे हैं। भ्रष्टाचारियों के आतंक से त्रस्त भारत अब कभी सचिन रमेश तेंदुलकर में अपना नायक देखता है, तो कभी अमिताभ, शाहरुख और आमिर खान में। कभी अंबानी, कभी अजीम प्रेमजी भी नायक बन जाते हैं ।
इस पूरे टेस्ट मैच में भारत की शर्मनाक हार कभी मुद्दा नहीं रही। मुद्दा ये रहा कि सचिन निजी कीर्तिमान को और कितनी ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। वैसे उनके कीर्तिमान जब देश के काम ही न आ सकें तो व्यर्थ हैं ।
ऐसे पहली बार नहीं हुआ है। कई मर्तबा सचिन को शतक बनाते हुए देखने के लिए विकल हमारी ये पीढ़ी देश की विजय या पराजय का प्रश्न भूल जाती है। इसके लिए बहुत हद तक मीडिया जिम्मेदार है। मीडिया ने उन्हें भगवान का दर्ज दे दिया है और क्रिकेट परोसने वाले चैनल उनके कीर्तिमानों से सम्मोहित हो चुके हैं।
खेल के नाम पर उन्हें सिर्फ क्रिकेट दिखता है और क्रिकेट के नाम पर सिर्फ सचिन। अगर कीर्तिमानों की ही बात है तो इसी टेस्ट के दौरान राहुल द्रविड़ 12000 रन का आंकड़ा छूने वाले दुनिया के तीसरे बल्लेबाज बन गए लेकिन उन्हें कौन पूछता है।
ये अंधभक्ति अब कुंठित सोच में तब्दील होती जा रही है। सचिन रमेश तेंदुलकर की महानता से भला कौन इन्कार करता है लेकिन वो देश से बड़े नहीं है। उनकी उपस्थिति इस देश से है। पहले देश है फिर सचिन तेंदुलकर हैं। अगर देश शर्मनाक हार के कगार पर है तो सचिन की व्यक्तिगत उपलब्धियां खुशी का मौका नहीं हैं।
देवांशु कुमार, एसोसिएट एक्जक्यूटिव प्रोड्यूसर, न्यूज 24, 9818442690
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
इस लिंक को मैंने फेसबुक पर दिया था, रोहन और तारिका मूलचंदानी ने पसंद किया।
agar woh sachin ke bare mein kuch achchha dikha rahe the to kya bura tha. Jab humko pata hai ki koi chiej hamare hath se nikal gayee hai aur usmein koi kuch humko khusi ka pal de raha hai to kya bura kar raha hai aap hamesha aisa hi chahate hai ki indians hamesha dukhi rahe jo aapne aisi tippani post ki hai. Agar tendulkar ki badai karne se aapko desh chhota lagta hai to lagta hai aap hamesha chhota hi rahna chahte. dhuki life mein agar thodi si bhi koi khusi deta hai hamari life mein to bakai bahut bada hai....
एक टिप्पणी भेजें