मंदी की मार है
बाज़ार में एक नया जुमला
जुमला नहीं
एक नया हथियार है
जिसे लेकर चलना
जुर्म नहीं ।
लेकिन इस हथियार ने
अब तक कर दिए हैं
न जाने कितने कत्ल ...
और
असली तमाशा तो अभी बाकी है
होना है जनसंहार
क्योंकि मंदी की मार है ।
-21 दिसम्बर २००८ को लिखी गयी कविता
रविवार, 21 दिसंबर 2008
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