शनिवार, 7 अगस्त 2010

निफ्ट का है अंदाज-ए-एडमिशन कुछ और...

ओबीसी कोटे की सीटें खालीं, एडमिशन क्लोज

नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलॉजी , नाम बड़ा और दर्शन छोटे । सरकारी पैसों से चलने वाले इस संस्थान में एडमिशन प्रक्रिया को देख कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ । आम सरकारी संस्थानों की तरह ही यहां भी अफसरशाही और लालफीताशाही का बोल-बाला है । यहां हम ओबीसी कोटे के तहत एडमिशन को लेकर चल रही अफरा-तफरी का जिक्र करेंगे, लेकिन उससे इस संस्थान की कार्यशैली की आपको कुछ झलक जरूर मिल जाएगी । आपको बता दें कि ओबीसी कोटे की सीटें खाली होने के बावजूद प्रवेश बंद करने की बात कही जा रही है । ये बात कोई निचले लेवल का अधिकारी नहीं बल्कि निफ्ट के डायरेक्टर धनजंय कुमार (एफ एंड ए) कर रहे हैं । वो खुले आम ये कह रहे हैं कि सीटें खाली हों तो भी एडमिशन देना या न देना हमारी मर्जी पर निर्भर करता है । आप इस बारे में कोई सवाल करें तो निफ्ट में कोई आपको तर्कों के साथ जवाब देने को तैयार नहीं ।

ओबीसी कोटे में हो रहे इस खिलवाड़ की भूमिका उसी वक्त तैयार हो चुकी थी जब काउंसलिंग के लिए पहली लिस्ट जारी की गई । बी डिजाइन के लिए ओबीसी कैटगरी में काउंसलिंग के लिए 530 छात्रों को बुलाया गया । ये कुल सीटों (345) की तुलना में महज 54 फीसदी ज्यादा छात्र थे, जबकि सामान्य कोटे में 85 फीसदी ज्यादा, एससी कोटे में 108 फीसदी ज्यादा और एसटी कैटगरी में 83 फीसदी ज्यादा छात्र काउंसलिंग के लिए बुलाए गए । अलग-अलग कैटगरी में काउंसलिंग के लिए बुलाए गए छात्रों के इस मनमाने समीकरण पर जब एडमिशन सेल (दिल्ली) में पूछताछ की गई तो बताया गया कि अगर सीटें बची रह जाएंगी तो काउंसलिंग के लिए दूसरी लिस्ट निकाली जाएगी ।

आपको बता दें कि बी डिजाइन के लिए ओबीसी की काउंसलिंग 18 जून को समाप्त हो गई लेकिन अभी तक दूसरी लिस्ट नहीं आई है । निफ्ट में बी एफटेक और मास्टर्स कोर्स के लिए काउंसलिंग की दूसरी लिस्ट जारी की गई लेकिन ओबीसी कैटगरी में दूसरी लिस्ट जारी करने की फुरसत संस्थान को नहीं मिल पा रही । इस बारे में बार-बार संपर्क करने वाले अभिभावकों को बस तारीख पर तारीख दी जाती रही लेकिन नेट पर दूसरी काउंसलिंग लिस्ट का दीदार नहीं हो पाया । जिन अभिभावकों ने फोन पर ज्यादा एतराज जताया उन्हें परेशान करने के लिए दिल्ली बुला लिया गया और यहां ये सूचना दे दी गई कि अब दूसरी लिस्ट नहीं जारी की जाएगी । ऐसा लगता है संस्थान ने वेटलिस्टेड छात्रों से संपर्क साधने का कोई गुपचुप तरीका ढूंढ निकाला है, जिसके बारे में आम अभिभावकों को जानने को कोई हक नहीं है ।

तथ्य ये भी है कि ओबीसी कैटगरी के लिए खाली सीटों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में एडमिशन सेल ने 24 जून को ये बताया कि अलग-अलग सेंटरों में 6 सीटें खाली हैं, जिनके लिए वेटलिस्ट जारी की जाएगी । खाली सीटों का ये आंकड़ा 26 जुलाई तक आते-आते महज 4 रह गया, इस पर डायरेक्टर और निप्ट के मुख्य अपील अधिकारी धनंजय कुमार का ये दावा कि जो भी होगा नियमों के मुताबिक होगा, संदेह के दायरे में आ जाता है । निफ्ट के एडमिशन सेल में कार्यरत श्रीमती सुनीता के मुताबिक 26 जुलाई को दो सीटें कांगड़ा सेंटर में और दो सीटें शिलांग में खाली थीं, लेकिन इन सीटों पर एडमिशन कब दिया जाएगा इस पर निफ्ट ने चुप्पी साध रखी है।

ऐसा ही कुछ संदेह पटना सेंटर की डोमिसाइल सीटों को लेकर भी है । 15 जुलाई को एडमिशन सेल ने फोन पर जानकारी दी कि सीटें खाली हैं और बिहार के लोगों को प्रवेश दिया जा सकता है लेकिन 26 जुलाई आते-आते ये बयान बदल गया । पटना की डोमिसाइल सीटें कब भरी गईं और किसको एडमिशन दे दिया गया ये पहेली आप बूझ सकें तो बूझें ।

निफ्ट अधिकारियों के बार-बार बयान बदलने से कई सवाल उठते हैं-

1. जब दूसरे कोर्सेस के लिए वेटलिस्टेड काउंसलिंग लिस्ट महज 10 दिनों में आ सकती है तो बी. डिजाइन में ऐसी क्या खास बात है कि करीब 40 दिनों बाद भी इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया जा सका ?
2।

ओबीसी कैटगरी की खाली 6 सीटें 4 में कैसे बदल गईं । 2 छात्रों को किस बिना पर एडमिशन दिया गया । आखिर क्या वजह है कि निफ्ट की वेबसाइट पर कोई सूचना दिए बिना ही एडमिशन देने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है?

3। एडमिशन की इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता क्यों नहीं बरती जा रही है?

4। 28 जुलाई से निफ्ट सेंटर पर क्लासेस शुरू हो चुकी हैं, ऐसे में आखिर कब तक छात्रों को निफ्ट अधिकारियों की चिट्ठी का इंतजार करना होगा?

सवाल कई हैं लेकिन निफ्ट अधिकारी इसका जवाब देने को तैयार नहीं । संस्थान जनता के पैसे से भले ही चलता हो लेकिन यहां सब कुछ अफसरशाही अंदाज में होता है । अगर कभी आप एडमिशन को लेकर किसी परेशानी में पड़ जाएं तो भूले से भी इन अफसरों से सवाल पूछने की गुस्ताखी मत कर बैठिएगा- वरना घूमते रह जाएंगे ।

पशुपति शर्मा

1 टिप्पणी:

पुष्यमित्र ने कहा…

आजकल हर इंडिपेंडेंट सरकारी संस्थान का प्रमुख कुद को सर्वेसर्वा समझने लगता है और अपने निजी हितों के लिये सारे नियम कानून ताक पर रख देता है. उसी की मिसाल है यह मामला...