सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

आयरा और कवि का प्रेम-1


(हाल ही में विमल कुमार के नए काव्य संकलन- क्या तुम रोशनी बनकर आओगी आयरा
?- हाथ लगा। महज 24 घंटों में एक-एक कविता पढ़ गया। दूसरी बार पढ़ते हुए बतौर पाठक कुछ बातें मन में उठीं, वो आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं। )

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संकलन की पहली कविता 'प्रेम क्या है?', प्रेम की उस व्यापकता का संकेत दे जाती है, जो महज नारी तक सीमित नहीं है। खुद को पहचानने और दूसरे को जानने तक पसरा है ये प्रेम। गलत को गलत और सही को सही मान पाने की सहज ताकत है कवि का प्रेम। 'प्रेम का अभिप्राय' में कवि चांद, फूल और सूरज की दुहाई देता हुआ प्रेम को महज देने का जरिया बना देता है, लेकिन इस आरजू के साथ कि बस कोई इस प्रेम को समझ ले।

अगर तुम न दे सको अपना प्रेम मुझे

तो कोई बात नहीं

पर कम से कम समझना जरूर

मेरा प्रेम कितना सच्चा है

प्रेम को समझना

मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है

प्रेम करने से

प्रेम और उसका अभिप्राय समझाने के बाद कवि ये भी समझा देना चाहते हैं कि 'प्रेम करने से पहले' क्या-क्या देख लेना चाहिेए। घर का नक्शा, चौहद्दी, आंगन, छत, सीढियां और खिड़कियां अगर घर हो तो, वरना ये देखें कि सिर पर कितना आसमान है, कितनी छांव। फिर धीरे से मन में झांक लेने की नसीहत भी - घबराहटें, साहस, दुख, धैर्य, लालच, घृणा, क्रूरता, हिंसा सब कुछ प्रेम से पहले जान लेने की ललक रखता है कवि। काश 'डायरियां पढ़ लेने' भर से ये समझ पाना इतना आसान होता।

प्रेम करने से पहले

हमें एक दूसरे के भीतर,

झांककर देख लेना चाहिए

जैसे हम देखते हैं

झांककर कोई कुआं

'प्रेम से पहले' कविता में कवि प्रेम को 'सृजन' का जरिया बताता हुआ 'क्रोध', 'तोहमत' से बचने की नसीहत भी देता चलता है। लेकिन क्या करे...

पर एक जद्दोजहद भी

चलती रहती है

मनुष्य के भीतर

तर्क और भावना के बीच

किसी की भावना जीत जाती है

तो किसी का तर्क जीत जाता है

और इस तरह हार जाता है मनुष्य

पड़ जाता है किसी के प्रेम में

फिर बुरी तरह

'प्यार में कुछ भी नहीं छिपाना चाहिए'- आसमान का रंग, बारिश, शहर में उल्लसित तरंगें, समुद्र का गर्जन, रात की उदासी- सब कुछ बता देना चाहिए। आसमान की पतंग, तार पर बैठी चिड़िया, आंगन में खिला फूल, पार्क में खिली धूप। ये सारी बातें इतनी सहजता से कवि कहता है कि पाठक के मन को गहरे तक छू जाती हैं। इसके साथ ही प्रेम में आज के सवाल कैसे घुलते हैं, वो भी कवि का अपना अंदाज है।

पर जब आदमी करता है

किसी से सच्चा प्यार

तो आटे दाल और

सब्जियों के दाम भी

चाहता है बताना

किस तरह बढ़ गई है महंगाई

और प्याज के भाव

चढ़ गए आसमान पर

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बढ़ गया है कितना

किराया

और स्कूल की फीस

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पर यह भी बताना चाहता है

नौकरी करता किस तरह घुट घुटकर

इन दिनों

और नहीं मिल पा रही है

समय पर तनख्वाह।




(विमल कुमार की प्रेम कविताओं के संकलन पर पाठकीय प्रतिक्रिया की दूसरी किश्त जल्द आपके साथ साझा करूंगा। कवि विमल से आप- 9968400416- पर संपर्क कर सकते हैं।)

1 टिप्पणी:

पुष्यमित्र ने कहा…

बहुत खूब, पढने की इच्छा जग उठी है