बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

हिरन की खाल की खंजड़ी और राम कथा

"छापक पेड़ त पतवल गहबर हो। तारि ढाढि़ हरिनिया हरिना बाट जोहत हो। ,यानी पलाश के पेड़ के नीचे हिरनी अपने हिरन की राह देख रही है। हिरन ने अपनी हिरनी से पूछा- क्या तुम्हारा चरहा सूख गया या पानी के बिना तुम्हारा चेहरा मुरझा गया है। हिरनी बोली- न मेरा चरहा सूखा न पानी के बिन मेरा चेहरा मुरझाया। आज राजा जी छट्ठी है वे तुम्हें मार डालेंगे।। कौशल्या रानी मचिया पर बैठी थीं। उनसे हिरनी ने प्रार्थना की. रानी मांस तो रसोई में पक रहा है, हमें खाल दे दो। मैं पेड़ से खाल लटका लूंगी और खाल देख-देखकर मन को समझा लूंगी कि मेरा हिरन अभी जीवित है। रानी बोली-हिरनी तू अपने घर जा। हिरन की खाल से मैं अपने राम के लिए खंजड़ी मढ़वाऊंगी तो मेरे राम उससे खेलेंगे।"
एक मशहूर पत्रकार और बौद्धिक(मुद्राराक्षस) ने इस लोककथा और सौहर के सहारे राम को खंडित करने का प्रयास किया है। विचार के केन्द्र में बीजेपी और राम हैं लेकिन आत्मा लेख की यह है कि राम महल वालों के देवता हैं । यानी बूर्जुआ। उन्हें दलितों, गरीबों से कोई मतलब नहीं था। उन्होंने लिखा है-'काश भारतीय जनता पार्टी या विश्व हिन्दू परिषद के लोग यह समझ पाते कि यह दर्द किसका है और क्यों कर है तो निश्चय़ ही इस देश के करोड़ों लोगों की तकलीफ में वे सीधे हिस्सेदारी करते। वे यह भी समझते कि राम के प्रति पेरियार के क्षोभ की वजह क्या हो सकती है।' बड़ा दिलचस्प विचार है। लेखक के मुताबिक पिछड़ों, जनजातियों और दलितों में राम तुच्छ हैं। अवध क्षेत्र में बच्चे की छट्ठी पर गाए जाने वाले इस सौहर के सहारे उन्होंने राम के पूरे व्यक्तित्व को ही खंडित कर दिया। सबसे पहली बात तो यह कि अवध के किस क्षेत्र में यह सौहर गाया जाता है उसका पता नहीं। लेकिन उन्होंने गजब के आत्मविश्वास के साथ पूरे अवध की महिलाओं के मन की बात जान ली। ये भी समझ गए कि राम सिर्फ उच्च जातियों के देवता है, आदर्श हैं।
चलिए ये मान भी लिया कि सौहर में घोर दुख झलकता है। लेकिन इस सौहर और लोककथा का राम से क्या? उनकी माता ने हिरनी से कहा कि हिरन की खाल से खंजड़ी मढ़वाकर वो राम को देंगी, राम उससे खेलेंगे। चूंकि राम की माता को हिरनी का दर्द नजर नहीं आया इसलिए लेखक के मुताबिक राम भी बेदर्द हो गए। क्या यह बताना भी जरूरी है राम इसलिए राम नहीं थे कि कौशल्या उनकी माता थीं और दशरथ उनके पिता। चारों भाइयों में राम विशिष्ट थे और पूर्ण थे इसलिए वो महामानव हुए। उनकी विमाता कैकयी ने राम के लिए वनवास मांगा तो राम ने क्या किया ये कहने और स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है। यह बताने की भी जरूरत नहीं है कि केवट, शबरी और अहिल्या के लिए उन्होंने क्या किया था।राम के मन में पिछड़ों के लिए कोई दर्द नहीं था इसीलिए जब वो केवट से विदाई ले रहे थे तो उन्होंने कहा- तुम मम प्रिय भरत हि सम भ्राता। क्या राम का दोष इसलिए था कि वो राजा के महल में पैदा हुए। बुद्ध बनने से पहले उनके पिता शुद्धोदन ने उन्हें तमाम राजसी प्रवृतियों की ओर धकेलने की कोशिश की तो क्या उनके पिता की ख्वाहिशों के लिए उन्हें कुसूरवार ठहरा दिय़ा जाए। बुद्ध का अपना अलग और महान व्यक्तित्व था।
सबसे बड़ी बात ये है कि इन लोकगीतों के गाये जाने का इतिहास क्या है और आज के समय अर्थ क्या है, इसका पता लगाना बेहद मुश्किल है। अगर राम के प्रति अवध की महिलाओं में इतना ही विकार है तो अपने बच्चे की छट्ठी पर वो इस दर्द भऱे सौहर को गाती क्यों हैं। इस सौहर का एक अर्थ तो ये भी हो सकता है कि तमाम माताएं ऐसी ही खंजड़ी अपने बच्चों के लिए मढ़वाना चाहती हों।राम के प्रति घृणा का सौहर इतने अच्छे मौके पर गाये जाने का कोई औचित्य नहीं दिखता।बचपन से आज तक जिस समाज में रहते आए हैं उसी समाज में राम के प्रति अगाध आस्था देखी है। उस समाज में गरीब. दलित, पिछड़े सभी शुमार हैं। बल्कि उनके मन में राम के प्रति अनंत आस्था देखी है। श्रद्धा की वो गहराई देखी है जो अगड़ों में नहीं नजर आती । पिछड़े तबके की औरतों को सैकड़ों बार राम के गीत गाते देखा और सुना है।
दरअसल इस दृष्टांत से सिर्फ यही समझ में आता है कि इन दिनों राम को जबरन उच्चवर्गीय समाज तक सीमित करने की घिनौनी कोशिश की जा रही है। किसी न किसी बहाने राम को हेठा साबित करने का फैशन सा चल पड़ा है। जब राम सेतु का मुद्दा छिड़ा, तब भी एक खास वर्ग ने राम सेतु को तुरंत नष्ट करने की वकालत की थी क्योंकि अत्यंत वैज्ञानिक विचारों से लैस इन बौद्धिकों के लिए राम तो काल्पनिक पात्र हैं। उनका कोई इतिहास नहीं मिलता। लेकिन उन्हें कौन समझाए कि भारत की संस्कृति और जीवन शैली तो इन्ही काल्पनिक पात्रों और कथानकों के सहारे जीवन ग्रहण करती रही है। तमाम कमियों और वर्णव्यवस्था की खामियों के बावजूद इस देश का सौन्दर्य बचा हुआ है तो उसकी वजह आध्यात्मिकता है। हमारी संस्कृति का खंभा वही है। लॉर्ड मैकाले ने जब हिन्दुस्तान का दौरा किया तो उन्हें इस समाज को गुलाम बनाने में यहां का आध्यात्म सबसे बड़ा रोड़ा दिखा था। क्योंकि मैकाले ने महसूस कर लिया था कि लोग अंदरूनी तौर पर इसी आध्यात्म से शक्ति पाते हैं।
बहरहाल आगे राजनीति का जिक्र करते हुए मुद्राराक्षस ने लिखा कि भाजपा और कांग्रेस ने इस पूरे क्षेत्र में अपनी जड़े सुखा लीं क्योंकि वो उन तमाम हिरनियों का दर्द नहीं देख सकी और काशीराम के आंदोलन ने जड़े जमाईं। दो दशकों में ही वो इस पूरे क्षेत्र के नायक बन कर उभर गए। इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि कांशीराम का आंदोलन फैला और उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ताकतवर बन कर उभऱी। लेकिन पिछले चुनाव की बात को दरकिनार कर दें तो क्या यह बताना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश में पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान राजनीति कितनी उथल पुथल भऱी रही है। मुलायम सिंह और मायावती ने सत्ता का सफर तय किया तो इसकी वजह लोगों में राम के प्रति नाराजगी या घृणा नहीं बल्कि सामाजिक, और जातीय समीकरण हैं। अभी मायावती ने सत्ता कैसे हासिल की यह भी सब जानते हैं। उन्हें बहुजन से सर्वजन का नारा देना पड़ा। और दिलचस्प बात ये भी है कि मायावती ऐसी तमाम हिरनियों का दर्द कितना महसूस करती रही हैं यह भी किसी से छिपा नहीं है। बिहार में लालू प्रसाद यादव ने भी पीड़ितों का दर्द महसूस किया था लेकिन पंद्रह साल तक राज्य को चूसने के बाद जब जनता का मोहभंग हुआ तो पिछले चुनाव में उन्हें दर्द हो गया। वो भी पीड़ितों के मसीहा बन कर उभरे थे लेकिन जब पीड़ितों ने महसूस कर लिया कि उनकी पीड़ा से लालू प्रसाद का कोई सरोकार नहीं तो उन्होंने खुद को उनसे दूर कर लिया। सत्ता राम से नहीं बल्कि काम से चलती है। जब बीजेपी ने राम के बूते सत्ता हासिल की और फिर लंबी तान कर सो गई तो जनता उन्हें दोबारा क्यों मौका देती।
हैरान करने वाली बात ये भी है कि राम के खिलाफ आग उगलने वाले तमाम लोगों और संगठनों ने राम को बीजेपी का देवता बना दिया है। ऐसा लगता है जैसे राम की पहचान बीजेपी से है। अगर चंद सनकी हिंदू संगठन राम के नाम पर हंगामा करते हैं तो क्या इसमें राम का दोष है॥ उनकी छोटी सोच और उनके राष्ट्रवाद का सिद्धांत बेहद संकीर्ण है। अगर वो अपने मकसद के लिए राम के नाम का बेजा इस्तेमाल करते हैं तो इससे राम छोटे नहीं हो जाते। राम एक जीवनशैली हैं। एक आदर्श जीवनशैली। कमियां तो शायद उनके व्यक्तित्व में भी निकाली जा सकती हैं लेकिन राम के आदर्श इतने महान हैं कि कमियों की कोई जगह नहीं। वो हमारे दिल में इसलिए नहीं है कि कौशल्या उनकी माता थीं बल्कि इसलिए हैं कि उन्होंने माता, पिता, पत्नी, सखा, शत्रु के साथ आदर्श संबंध की मिसाल पेश की थी। वो महान इसलिए हैं कि उन्होंने खुद त्याग कर दूसरों को सुख देने में एक बार भी विचार नहीं किया था। उन्हें सिर्फ इसलिए खंडित करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिये कि वो महल में पैदा हुए। वो सदियों से करोड़ों दिलों में बसे हैं और आने वाली सदियों तक बसे रहेंगे। बेहतर यही है कि हमारा समाज उनके जीवन से कुछ सीखे। हम जिस हिंसक दौर में जी रहे हैं उसमें राम प्रासंगिक ही नहीं अनिवार्य भी हैं।
देवांशु कुमार (न्यूज २४ में बतौर प्रोड्यूसर कार्यरत)
( 205/2, कीर्ति अपार्टमेंटमयुर विहार फेज-1 नई दिल्ली-91 फोन-९८१८४४२६९०)

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