शनिवार, 31 जुलाई 2010

स्नेह का सोता न जाने कहां गुम हो गया....


फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड । दुबे सर को क्या कहें, ये दुविधा मेरी नहीं उनकी है जिन्होंने मेरा तार्रुफ दुबे सर से कराया । आनंदजी (आनंद प्रकाश श्रीवास्तव, मौजूदा एसोसिएट एडिटर, द संडे इंडियन) के साथ ही दुबे सर से पहली मुलाकात हुई और आखिरी भी । आनंद सर सदमे में हैं और अभी इससे उबर नहीं पाए हैं । बुधवार (28 जुलाई 2010) सुबह 6 बजे करीब दुबे सर के नंबर से फोन आया । इतनी सुबह फोन देख जो डर मन में कौंधा अगले पल कुछ लफ्जों ने वही बात दोहरा दी । तुरंत आनंद सर का फोन आया और हम दुबे सर के घर पहुंचे । जो सीढ़ियां चढ़ते हुए हम ऊपर उनके कमरे तक पहुंचते थे, वहां सन्नाटा पसरा था और दुबे सर खामोश थे । वो होते तो न जाने देखते ही कितनी बातें कह जाते । जब भी मिले बड़ी गर्मजोशी से और बड़ी जिंदादिली से । एक रिश्ता स्नेह का था... जो सारे रिश्ते से कहीं बढ़कर था ।
दुबे सर से पहली मुलाकात की पृष्ठभूमि और पूरा प्रकरण भी काफी रोचक है । बात करीब 7 साल पुरानी है । कुछ निजी कारणों से उन्हें उन दिनों बिहारियों से बड़ी चिढ़ हो गई थी । लोकायत में कुछ संपादकीय सहयोगियों की जरूरत थी और मैंने एक झूठ के सहारे उनसे ये नौकरी मांगी । मैंने कहा कि मैं राजस्थान से हूं । हालांकि ये आंशिक रूप से सच था फिर भी झूठ ही था । इसी तरह पुष्यमित्र ने भी खुद को मध्यप्रदेश का बता कर उनकी टीम ज्वाइन की । हालांकि दुबे सर किसी भी शख्स से इतने सारे सवाल करते हैं कि ये झूठ बहुत दिनों तक नहीं चल सका । फिर तो वो जब न तब ठहाके लगाते और हमें ताना मारते- तुम बिहारियों से मैं बचना चाहता था और तुम्हीं लोगों ने मुझे घेर लिया ।
लोकायत की ये नौकरी बहुत दिनों तक नहीं चली । पत्रिका के पहले इश्यू के साथ ही दुबे सर ने पत्रिका को अलविदा कर दिया । इस पत्रिका में काम करने की सबसे बड़ी उपलब्धि दुबे सर से परिचय ही रहा । इसके बाद उनसे निजी मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ और एक अजीब सी आत्मीयता बनती चली गई । दुबे सर के यहां ज्यादातर आनंद सर के साथ ही जाना होता था । दरअसल उनकी बातचीत का दायरा इतना बड़ा होता था कि मुझे हर वक्त डर लगता रहता, पता नहीं कब कौन सा सवाल दाग दें । हालांकि थोड़ी सी झिड़क के साथ ही फिर वो विस्तार से सब कुछ समझा कर ही दम लेते ।
दुबे सर ने काफी स्नेह और प्यार दिया । मेरी नौकरी को लेकर चिंतित रहते और जब नौकरी हो गई तो शादी को लेकर सलाह देने लगे । शादी पक्की हुई और मैंने उन्हें सूचना दी तो कहा मैं जरूर जाऊंगा पूर्णिया । तब मैं और दुबे सर एक साथ ही घर गए थे । तिलक से लेकर रिसेप्शन तक हर फंक्शन में दुबे सर शामिल हुए । डायबिटीज की शिकायत के बावजूद मिठाइयां जमकर खाईं और बारात में ठुमके भी लगाए । घर का हर छोटा- बड़ा दुबे सर का ये जोश और उनका प्यार देख दंग था । मैं मन ही मन गदगद ।
दुबे सर के साथ दूसरी यात्रा महेश्वर की रही । अभी मार्च महीने की ही तो बात है । दुबे सर के सामने मैंने महेश्वर जाने का प्रस्ताव रखा और वो फट से तैयार हो गए । कब और कैसे जाना है फटाफट प्रोग्राम बनाया और चल पड़े। महेश्वर विजिट के दौरान काफी बातें हुईं । मीडियाकर्मियों के हालात और उनके संगठन को लेकर वो काफी फिक्रमंद थे । वहां हर किसी के साथ काफी गर्मजोशी से मिले और कई सारे सवाल भी रखे । मुझसे कहा कि विकास संवाद वालों से बात कर अगली बार एक सत्र अपने मन के मुताबिक रखवाऊंगा और उसका संचालन भी खुद ही करूंगा । सचिन जी के साथ भी काफी बातें की... लेकिन ये अगला साल नहीं आ सका ।
दुबे सर के साथ आखिरी मुलाकात विनायक अस्पताल में हुई । इधर-उधर की बातों के बाद मेरे घर के बारे में पूछने लगे । कहने लगे सर्बानी को बी एड करवा दो । मेरी पत्नी सर्बानी के करियर को लेकर वो शुरू से ही काफी फिक्रमंद रहे । उसने लॉ कर लिया है अब कुछ करवाते क्यों नहीं ? कुछ नहीं तो बी एड करवाओ... नौकरी लगवाओ.. सर्बानी से भी फोन पर ये सब बात दोहराते । वो इस बात के पक्षधर थे कि महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हों और घरेलू हिंसा या दमन का शिकार न हो । गाहे-बगाहे कई उदाहरणों से वो मुझे भी ताकीद करते रहते थे ।
दुबे सर का जाना... स्नेह के एक साये का उठ जाना है... अब वो बस यादों में ही रहेंगे... कभी हम उस कमरे में बैठ कर घंटों गप्प नहीं लड़ा सकेंगे जहां पता नहीं कितनी- कितनी बार हमने अड्डा जमाया... अब दुबे सर के साथ स्लमडाग मिलेनियर भी नहीं देख पाएंगे... अब कभी मन घबराया तो कहां जाएंगे सर... एक घर था अपना वो तो उजड़ गया... पिता तो मीलों दूर हैं.... एक पिता जो थोड़े से फासले पर बैठा था उसने भी अपना हाथ सिर से उठा लिया... हम स्वार्थी हैं सर... इसलिए भी आपको काफी-काफी मिस करेंगे... आपकी तरह निर्लिप्त और निर्मोही नहीं कि पल भर में टाटा-बाय कर चलते बने....

पशुपति शर्मा
मीडियाकर्मी और दुबेजी के स्नेह का चिर आकांक्षी

कोई टिप्पणी नहीं: