शनिवार, 17 जनवरी 2009

ख़त्म हुआ इंतज़ार

१, २, ३ नहीं पूरे ४५ दिनों के इंतज़ार के बाद आखिरकार आ ही गयी नवम्बर की सैलरी।
राजेश भाई की शिकायत बिल्कुल जायज है कि हम लोगों का ये इंतज़ार ही कई सारी समस्याओं को जन्म दे जाता है। हम हमेशा ये सोचते रह जाते हैं कि कल हो सकता है सब कुछ बदल जाए लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा।
१. ख़ुद राजेश भाई का ही इंतज़ार ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा।
२. कुछ ऐसा ही आलम है हमारे एक और साथी नीरज कुमार का भी। उसे सैलरी मांगने की सजा मिली. वीओआई प्रबंधन ने उसे नौकरी से निकाल दिया। हद तो ये है कि तमाम हो हंगामे के बावजूद उसे अदालत की तरह तारीख पे तारीख दी जा रही है। कंपनी चार पाँच महीनो में चंद हजार रूपये भी नहीं जुटा पा रही है ताकि नीरज का फाइनल पेमेंट किया जा सके।
जाहिर है कि ये सवाल परेशानियों का नहीं नीयत का है।
बात और भी होगी, बातें कई हैं जेहन में, लेकिन सब आहिस्ता आहिस्ता...
जैसे प्यार आहिस्ता आहिस्ता वैसे ही गुस्सा भी आहिस्ता आहिस्ता...

3 टिप्‍पणियां:

कलम का सिपाही ने कहा…

http://72.14.235.132/search?q=cache:qOJg-t33yVoJ:hindi.india-today.com/datedir/20011226/kath2.shtml+%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6&hl=hi&ct=clnk&cd=4&gl=in

Aadarsh Rathore ने कहा…

बधाई हो सर
कम से कम मिली तो। इस बार तो कमबख्त लोग चर्चा भी नहीं कर रहे कि सेलरी मिलेगी भी या नहीं। हर कोई या तो अभ्यस्त हो गया है या निरुत्साहित हो गया है।

सोतड़ू ने कहा…

मुबारकां........
अप्रत्याशित रूप से मुझे भी नवंबर की सैलेरी मिल गई है। पता चला कि उन्होंने मेरा इस्तीफ़ा ही स्वीकार नहीं किया है। अक्टूबर की अटकी हुई है- मित्तल जी के हस्ताक्षर के इंतज़ार में....