दिल्ली की
सर्द रात और
क्नॉट प्लेस पर
रोता बच्चा
भीख मांगता, खेलता
भटक आया इस
फुटपाथ पर।
डरा, सहमा वह नन्हा
दो खुली आंखों से
खोजता अपनी मां को।
आसमान में तारे और
एक बड़ा सा चांद
उग आया।
बच्चा टकटकी लगाए
कुछ देर देखता है और
फिर स्ट्रीट लाइट के
नीचे झरे
पत्तों के ढेर इकट्ठा कर
नरम बिस्तर बना
सो जाता है।
सुबह तक
हो सकता है
उसे उसकी मां मिल जाए!
- शिरीष खरे (क्राई, मुंबई में कार्यरत)
बुधवार, 18 मार्च 2009
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2 टिप्पणियां:
माननीय महोदय/महोदया
सादर अभिवादन
आपके ब्लाग की प्रस्तुति ने अत्यधिक प्रभावित किया। पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ने के लिए मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारें।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथाचक्र
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http://katha-chakra.blogspot.com
प्रभु एक से बढ़कर एक रचनाएं। सभी मित्रो को बधाई और आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
यारों की महफिल में और भी रंग जमे...
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