सोमवार, 2 मार्च 2009

वसंत

गांव को जाती हुई पगडंडी पर
सर्दी की सुस्त परछाई को
कल शाम घिसटते देखा था मैंने।
पेड़ से लटक रहे थे
आधे हरे, आधे पीले पत्ते उदास।
पेड़ ने ज्यों देखा
अपना पीला बीमार चेहरा,
उद्धत होकर झाड़ दिये सब पत्ते।
पत्ते उड़ते रहे खेत में,
मैदान में कहते रहे अपनी व्यथा।
डालियां कांपती रहीं देर तक,
हिल-हिल कर वसंत को बुलाती रहीं।
-देवांशु कुमार (न्यूज २४ में बतौर प्रोड्यूसर कार्यरत)

2 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

अच्छी रचना है

Aadarsh Rathore ने कहा…

एक साथ इतनी रचनाएं पढ़ने को मिलीं और वो भी उच्च स्तरीय... काफी कुछ सीखने को मिला।
धन्यवाद।