१- मेलघाट
जो तिनका-तिनका जोड़कर
जिंदगी बुनते थे
वो बिखर गए।
गांव-गांव
टूट-टूटकर
ठांव-ठांव बन गए।
अब उम्मीद से
उसकी उम्र
और छांव-छांव से
पता पूछना
बेकार है।
२
मुंबई
मुंबई का चांद
अकेला होता है।
उस रात
बहुत अकेला था चांद
खुले आसमान में
चंद तारों के साथ
अकेला और
देर तक लटका था चांद।
बेकरार चांद
उस रात
सोना नहीं चाहता था।
वह जानता था
उसकी एक झपकी से
उजियाला होगा और
शहर के हजारों चांद टूट जाएंगे।
शहर के हजारों घर रोशनी खो देंगे
वह अपने ठिकानों से लापता होंगे।
उस रात
चांद
हजारों ख्वाबों को तोड़ने की तैयारियां
देख रहा था।
- ये दोनों कविताएं शिरीष खरे की है, जो इन दिनों क्राई, मुंबई के साथ काम कर रहे हैं।
बुधवार, 25 मार्च 2009
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1 टिप्पणी:
चांद तो दिल्ली में भी अकेला है,
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